Ghalib Shayari in Hindi - Each and every status has been cross-checked twice to make sure it's written by Ghalib Sir. Now our collection is ready for you to enjoy! Do share it as much as possible!
1.इश्क़ ने ग़ालिब निकम्मा कर दिया वर्ना हम भी आदमी थे काम के|
2. इशरत ए क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना, दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना|
3. इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतश ग़ालिब कि लगाए न लगे और बुझाए न बने|
4. जब तवक़्क़ो ही उठ गई ग़ालिब क्यूँ किसी का गिला करे कोई|
5. जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा, कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है|
6. जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत के रात दिन बैठे रहें तसव्वुर ए जानाँ किए हुए|
7. कब वो सुनता है कहानी मेरी और फिर वो भी ज़बानी मेरी|
8. कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से जफ़ाएँ कर के अपनी याद शरमा जाए है मुझ से|
9. कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग हम को जीने की भी उम्मीद नहीं|
10. की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं होती आई है कि अच्छों को बुरा कहते हैं|
11. बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना|
12. अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद ए क़त्ल मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिले|
13. आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे, ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे|
14. आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक|
15. आज हम अपनी परेशानी ए ख़ातिर उन से कहने जाते तो हैं पर देखिए क्या कहते हैं|
16. आज वाँ तेग़ ओ कफ़न बाँधे हुए जाता हूँ मैं उज़्र मेरे क़त्ल करने में वो अब लावेंगे क्या|
17. बना कर फ़क़ीरों का हम भेस ग़ालिब तमाशा ए अहल ए करम देखते हैं|
18. आए है बे कसी ए इश्क़ पे रोना ग़ालिब किस के घर जाएगा सैलाब ए बला मेरे बाद|
19. बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह, जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है|
20. तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतिबार होता|
21. रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए, धोए गए हम इतने कि बस पाक हो गए|
22. रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज, मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं|
23. तुम सलामत रहो हज़ार बरस, हर बरस के हों दिन पचास हज़ार|
24. उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है|
25. वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है, कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं|
26. यही है आज़माना तो सताना किस को कहते हैं, अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तिहाँ क्यूँ हो|
27. ज़िंदगी में तो वो महफ़िल से उठा देते थे, देखूँ अब मर गए पर कौन उठाता है मुझे|
28. मत पूँछ की क्या हाल हैं मेरा तेरे पीछे, तू देख की क्या रंग हैं तेरा मेरे आगे|
29. ऐ बुरे वक़्त ज़रा अदब से पेश आ, क्यूंकि वक़्त नहीं लगता वक़्त बदलने में|
30. ज़िन्दगी उसकी जिस की मौत पे ज़माना अफ़सोस करे ग़ालिब, यूँ तो हर शक्श आता हैं इस दुनिया में मरने कि लिए|
31. ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर, या वह जगह बता जहाँ खुदा नहीं|
32. था ज़िन्दगी में मर्ग का खत्का लाग हुआ, उड़ने से पेश तर भी मेरा रंग ज़र्द था|
33. क़ैद ए हयात ओ बंद ए ग़म, अस्ल में दोनों एक हैंमौत से पहले आदमी ग़म से निजात पाए क्यूँ?
34. इस सादगी पर कौन ना मर जाये, लड़ते है और हाथ में तलवार भी नहीं|
35. उनके देखे जो आ जाती है रौनक वो समझते है कि बीमार का हाल अच्छा है|
36. जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा, कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है|
37. हथून कीय लकीरून पय मैट जा ऐ ग़ालिब, नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते|
38. उनकी देखंय सी जो आ जाती है मुंह पर रौनक, वह समझती हैं केह बीमार का हाल अच्छा है|
39. दिल सी तेरी निगाह जिगर तक उतर गई, दोनो को एक अड्डा में रज़्ज़ा मांड क्र गए|
40. कितना खौफ होता है शाम के अंधेरूँ में, पूँछ उन परिंदों से जिन के घर्र नहीं होते|
41. हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी के हर ख्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मीरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले|
42. रेख्ते के तुम्हें उस्ताद नहीं हो ग़ालिब, कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था|
43. उस पर उतरने की उम्मीद बोहत कम है, कश्ती भी पुरानी है और तूफ़ान को भी आना है
44. मासूम मोहब्बत का बस इतना फ़साना है, कागज़ की हवेली है बारिश का ज़माना है|
45. उस पर उतरने की उम्मीद बोहत कम है, कश्ती भी पुरानी है और तूफ़ान को भी आना है|
46. उस पर उतरने की उम्मीद बोहत कम है, कश्ती भी पुरानी है और तूफ़ान को भी आना है|
47. यह इश्क़ नहीं आसान बस इतना समझ लीजिये, एक आग का दरया है और डूब कर जाना है|
48. कोई उम्मीद बर नहीं आती कोई सूरत नज़र नहीं आती|
49. मौत का एक दिन मुअय्यन हैज़ निहद क्यों रात भर नही आती?
50. आगे आती थी हाल इ दिल पे हंसी अब किसी बात पर नहीं आती|
52. क्यों न चीखूँ की याद करते हैं, मेरी आवाज़ गर नहीं आती|
53. हम वहाँ हैं जहां से हमको भी, कुछ हमारी खबर नहीं आती|
54. हजारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले| बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले|
55. तू तो वो जालिम है जो दिल में रह कर भी मेरा न बन सका, ग़ालिब और दिल वो काफिर, जो मुझ में रह कर भी तेरा हो गया|
56. वो आये घर में हमारे, खुदा की कुदरत है कभी हम उन्हें कभी अपने घर को देखते है|
57. पीने दे शराब मस्जिद में बैठ के, ग़ालिब या वो जगह बता जहाँ खुदा नहीं है|
58. हुई मुद्दत के ग़ालिब मर गया, पर याद आती है, जो हर एक बात पे कहना की यूं होता तो क्या होता|
59. इश्क़ पर जोर नहीं, यह तो वो आतिश है, ग़ालिब के लगाये न लगे और बुझाए न बुझे|
60. कहूँ किस से मैं कि क्या है शब ए ग़म बुरी बला है, मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता|
61. कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तू ने हमनशीं, इक तीर मेरे सीने में मारा कि हाए|
62. आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब, दिल का क्या रंग करूँ ख़ून ए जिगर होते तक|
63. आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक|
64. आ ही जाता वो राह पर ग़ालिब कोई दिन और भी जिए होते|
65. और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया, साग़र ए जम से मिरा जाम ए सिफ़ाल अच्छा है|
66. इब्न ए मरयम हुआ करे कोई मेरे दुख की दवा करे कोई|
67. ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र काबा मिरे पीछे है कलीसा मिरे आगे|
68. एक हंगामे पे मौक़ूफ़ है घर की रौनक़, नौहा ए ग़म ही सही नग़्मा ए शादी न सही|
69. इक ख़ूँ चकाँ कफ़न में करोड़ों बनाओ हैं, पड़ती है आँख तेरे शहीदों पे हूर की|
70. इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मैं, जी ख़ुश हुआ है राह को पुर ख़ार देख कर|
71. कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग हम को जीने की भी उम्मीद नहीं|
72. एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब, ख़ून ए जिगर वदीअत ए मिज़्गान ए यार था|
73. क़तरा अपना भी हक़ीक़त में है दरिया लेकिन हम को तक़लीद ए तुनुक ज़र्फ़ी ए मंसूर नहीं|
74. आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था|
75. आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे, ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे|
76. आँख की तस्वीर सर नामे पे खींची है कि ता तुझ पे खुल जावे कि इस को हसरत ए दीदार है|
77. आज हम अपनी परेशानी ए ख़ातिर उन से कहने जाते तो हैं पर देखिए क्या कहते हैं|
78. आज हम अपनी परेशानी ए ख़ातिर उन से कहने जाते तो हैं पर देखिए क्या कहते हैं|
79. उधर वो बद गुमानी है इधर ये ना तवानी है, न पूछा जाए है उस से न बोला जाए है मुझ से|
80. उम्र भर का तू ने पैमान ए वफ़ा बाँधा तो क्या उम्र को भी तो नहीं है पाएदारी हाए हाए|
81. इस नज़ाकत का बुरा हो वो भले हैं तो क्या हाथ आवें तो उन्हें हाथ लगाए न बने|
82. इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं|
83. कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं आज ग़ालिब ग़ज़ल सरा न हुआ|
84. अगले वक़्तों के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो जो मय ओ नग़्मा को अंदोह रुबा कहते हैं|
85. अपना नहीं ये शेवा कि आराम से बैठें उस दर पे नहीं बार तो का’बे ही को हो आए|
86. उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है|
87. अपनी हस्ती ही से हो जो कुछ हो आगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही|
88. अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद ए क़त्ल मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ मिले तेरा घर|
89. अर्ज़ ए नियाज़ ए इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा, जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा|
90. इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही, मेरी वहशत तिरी शोहरत ही सही|
91. अगर ग़फ़लत से बाज़ आया जफ़ा की तलाफ़ी की भी ज़ालिम ने तो क्या की|
92. काबा किस मुँह से जाओगे ग़ालिब शर्म तुम को मगर नहीं आती|
93. काफ़ी है निशानी तिरा छल्ले का न देना ख़ाली मुझे दिखला के ब वक़्त ए सफ़र अंगुश्त|
94. उस लब से मिल ही जाएगा बोसा कभी तो हाँ शौक़ ए फ़ुज़ूल ओ जुरअत ए रिंदाना चाहिए|
95. काव काव ए सख़्त जानी हाए तन्हाई न पूछ सुब्ह करना शाम का लाना है जू ए शीर का|
96. कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से जफ़ाएँ कर के अपनी याद शरमा जाए है मुझ से|
97. कब वो सुनता है कहानी मेरी और फिर वो भी ज़बानी मेरी|
98. कह सके कौन कि ये जल्वागरी किस की है, पर्दा छोड़ा है वो उस ने कि उठाए न बने|
99. इशरत ए क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना, दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना|
100. आते हैं ग़ैब से ये मज़ामीं ख़याल में ग़ालिब सरीर ए ख़ामा नवा ए सरोश है|
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Ghalib Shayari in Hindi
2. इशरत ए क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना, दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना|
3. इश्क़ पर ज़ोर नहीं है ये वो आतश ग़ालिब कि लगाए न लगे और बुझाए न बने|
4. जब तवक़्क़ो ही उठ गई ग़ालिब क्यूँ किसी का गिला करे कोई|
5. जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा, कुरेदते हो जो अब राख जुस्तुजू क्या है|
6. जी ढूँडता है फिर वही फ़ुर्सत के रात दिन बैठे रहें तसव्वुर ए जानाँ किए हुए|
7. कब वो सुनता है कहानी मेरी और फिर वो भी ज़बानी मेरी|
8. कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से जफ़ाएँ कर के अपनी याद शरमा जाए है मुझ से|
9. कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग हम को जीने की भी उम्मीद नहीं|
10. की वफ़ा हम से तो ग़ैर इस को जफ़ा कहते हैं होती आई है कि अच्छों को बुरा कहते हैं|
11. बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना|
12. अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद ए क़त्ल मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ तेरा घर मिले|
13. आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे, ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे|
14. आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक|
15. आज हम अपनी परेशानी ए ख़ातिर उन से कहने जाते तो हैं पर देखिए क्या कहते हैं|
16. आज वाँ तेग़ ओ कफ़न बाँधे हुए जाता हूँ मैं उज़्र मेरे क़त्ल करने में वो अब लावेंगे क्या|
17. बना कर फ़क़ीरों का हम भेस ग़ालिब तमाशा ए अहल ए करम देखते हैं|
18. आए है बे कसी ए इश्क़ पे रोना ग़ालिब किस के घर जाएगा सैलाब ए बला मेरे बाद|
19. बोसा देते नहीं और दिल पे है हर लहज़ा निगाह, जी में कहते हैं कि मुफ़्त आए तो माल अच्छा है|
20. तिरे वादे पर जिए हम तो ये जान झूट जाना कि ख़ुशी से मर न जाते अगर एतिबार होता|
21. रोने से और इश्क़ में बेबाक हो गए, धोए गए हम इतने कि बस पाक हो गए|
22. रंज से ख़ूगर हुआ इंसाँ तो मिट जाता है रंज, मुश्किलें मुझ पर पड़ीं इतनी कि आसाँ हो गईं|
23. तुम सलामत रहो हज़ार बरस, हर बरस के हों दिन पचास हज़ार|
24. उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है|
25. वो आए घर में हमारे ख़ुदा की क़ुदरत है, कभी हम उन को कभी अपने घर को देखते हैं|
26. यही है आज़माना तो सताना किस को कहते हैं, अदू के हो लिए जब तुम तो मेरा इम्तिहाँ क्यूँ हो|
27. ज़िंदगी में तो वो महफ़िल से उठा देते थे, देखूँ अब मर गए पर कौन उठाता है मुझे|
28. मत पूँछ की क्या हाल हैं मेरा तेरे पीछे, तू देख की क्या रंग हैं तेरा मेरे आगे|
29. ऐ बुरे वक़्त ज़रा अदब से पेश आ, क्यूंकि वक़्त नहीं लगता वक़्त बदलने में|
30. ज़िन्दगी उसकी जिस की मौत पे ज़माना अफ़सोस करे ग़ालिब, यूँ तो हर शक्श आता हैं इस दुनिया में मरने कि लिए|
31. ज़ाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठ कर, या वह जगह बता जहाँ खुदा नहीं|
32. था ज़िन्दगी में मर्ग का खत्का लाग हुआ, उड़ने से पेश तर भी मेरा रंग ज़र्द था|
33. क़ैद ए हयात ओ बंद ए ग़म, अस्ल में दोनों एक हैंमौत से पहले आदमी ग़म से निजात पाए क्यूँ?
34. इस सादगी पर कौन ना मर जाये, लड़ते है और हाथ में तलवार भी नहीं|
35. उनके देखे जो आ जाती है रौनक वो समझते है कि बीमार का हाल अच्छा है|
36. जला है जिस्म जहाँ दिल भी जल गया होगा, कुरेदते हो जो अब राख, जुस्तजू क्या है|
37. हथून कीय लकीरून पय मैट जा ऐ ग़ालिब, नसीब उनके भी होते हैं जिनके हाथ नहीं होते|
38. उनकी देखंय सी जो आ जाती है मुंह पर रौनक, वह समझती हैं केह बीमार का हाल अच्छा है|
39. दिल सी तेरी निगाह जिगर तक उतर गई, दोनो को एक अड्डा में रज़्ज़ा मांड क्र गए|
40. कितना खौफ होता है शाम के अंधेरूँ में, पूँछ उन परिंदों से जिन के घर्र नहीं होते|
41. हज़ारों ख्वाहिशें ऐसी के हर ख्वाहिश पे दम निकले बहुत निकले मीरे अरमान लेकिन फिर भी कम निकले|
42. रेख्ते के तुम्हें उस्ताद नहीं हो ग़ालिब, कहते हैं अगले ज़माने में कोई मीर भी था|
43. उस पर उतरने की उम्मीद बोहत कम है, कश्ती भी पुरानी है और तूफ़ान को भी आना है
44. मासूम मोहब्बत का बस इतना फ़साना है, कागज़ की हवेली है बारिश का ज़माना है|
45. उस पर उतरने की उम्मीद बोहत कम है, कश्ती भी पुरानी है और तूफ़ान को भी आना है|
46. उस पर उतरने की उम्मीद बोहत कम है, कश्ती भी पुरानी है और तूफ़ान को भी आना है|
47. यह इश्क़ नहीं आसान बस इतना समझ लीजिये, एक आग का दरया है और डूब कर जाना है|
48. कोई उम्मीद बर नहीं आती कोई सूरत नज़र नहीं आती|
49. मौत का एक दिन मुअय्यन हैज़ निहद क्यों रात भर नही आती?
50. आगे आती थी हाल इ दिल पे हंसी अब किसी बात पर नहीं आती|
52. क्यों न चीखूँ की याद करते हैं, मेरी आवाज़ गर नहीं आती|
53. हम वहाँ हैं जहां से हमको भी, कुछ हमारी खबर नहीं आती|
54. हजारों ख्वाहिशें ऐसी की हर ख्वाहिश पे दम निकले| बहुत निकले मेरे अरमान, लेकिन फिर भी कम निकले|
55. तू तो वो जालिम है जो दिल में रह कर भी मेरा न बन सका, ग़ालिब और दिल वो काफिर, जो मुझ में रह कर भी तेरा हो गया|
56. वो आये घर में हमारे, खुदा की कुदरत है कभी हम उन्हें कभी अपने घर को देखते है|
57. पीने दे शराब मस्जिद में बैठ के, ग़ालिब या वो जगह बता जहाँ खुदा नहीं है|
58. हुई मुद्दत के ग़ालिब मर गया, पर याद आती है, जो हर एक बात पे कहना की यूं होता तो क्या होता|
59. इश्क़ पर जोर नहीं, यह तो वो आतिश है, ग़ालिब के लगाये न लगे और बुझाए न बुझे|
60. कहूँ किस से मैं कि क्या है शब ए ग़म बुरी बला है, मुझे क्या बुरा था मरना अगर एक बार होता|
61. कलकत्ते का जो ज़िक्र किया तू ने हमनशीं, इक तीर मेरे सीने में मारा कि हाए|
62. आशिक़ी सब्र तलब और तमन्ना बेताब, दिल का क्या रंग करूँ ख़ून ए जिगर होते तक|
63. आह को चाहिए इक उम्र असर होते तक कौन जीता है तिरी ज़ुल्फ़ के सर होते तक|
64. आ ही जाता वो राह पर ग़ालिब कोई दिन और भी जिए होते|
65. और बाज़ार से ले आए अगर टूट गया, साग़र ए जम से मिरा जाम ए सिफ़ाल अच्छा है|
66. इब्न ए मरयम हुआ करे कोई मेरे दुख की दवा करे कोई|
67. ईमाँ मुझे रोके है जो खींचे है मुझे कुफ़्र काबा मिरे पीछे है कलीसा मिरे आगे|
68. एक हंगामे पे मौक़ूफ़ है घर की रौनक़, नौहा ए ग़म ही सही नग़्मा ए शादी न सही|
69. इक ख़ूँ चकाँ कफ़न में करोड़ों बनाओ हैं, पड़ती है आँख तेरे शहीदों पे हूर की|
70. इन आबलों से पाँव के घबरा गया था मैं, जी ख़ुश हुआ है राह को पुर ख़ार देख कर|
71. कहते हैं जीते हैं उम्मीद पे लोग हम को जीने की भी उम्मीद नहीं|
72. एक एक क़तरे का मुझे देना पड़ा हिसाब, ख़ून ए जिगर वदीअत ए मिज़्गान ए यार था|
73. क़तरा अपना भी हक़ीक़त में है दरिया लेकिन हम को तक़लीद ए तुनुक ज़र्फ़ी ए मंसूर नहीं|
74. आईना देख अपना सा मुँह ले के रह गए साहब को दिल न देने पे कितना ग़ुरूर था|
75. आईना क्यूँ न दूँ कि तमाशा कहें जिसे, ऐसा कहाँ से लाऊँ कि तुझ सा कहें जिसे|
76. आँख की तस्वीर सर नामे पे खींची है कि ता तुझ पे खुल जावे कि इस को हसरत ए दीदार है|
77. आज हम अपनी परेशानी ए ख़ातिर उन से कहने जाते तो हैं पर देखिए क्या कहते हैं|
78. आज हम अपनी परेशानी ए ख़ातिर उन से कहने जाते तो हैं पर देखिए क्या कहते हैं|
79. उधर वो बद गुमानी है इधर ये ना तवानी है, न पूछा जाए है उस से न बोला जाए है मुझ से|
80. उम्र भर का तू ने पैमान ए वफ़ा बाँधा तो क्या उम्र को भी तो नहीं है पाएदारी हाए हाए|
81. इस नज़ाकत का बुरा हो वो भले हैं तो क्या हाथ आवें तो उन्हें हाथ लगाए न बने|
82. इस सादगी पे कौन न मर जाए ऐ ख़ुदा लड़ते हैं और हाथ में तलवार भी नहीं|
83. कुछ तो पढ़िए कि लोग कहते हैं आज ग़ालिब ग़ज़ल सरा न हुआ|
84. अगले वक़्तों के हैं ये लोग इन्हें कुछ न कहो जो मय ओ नग़्मा को अंदोह रुबा कहते हैं|
85. अपना नहीं ये शेवा कि आराम से बैठें उस दर पे नहीं बार तो का’बे ही को हो आए|
86. उन के देखे से जो आ जाती है मुँह पर रौनक़ वो समझते हैं कि बीमार का हाल अच्छा है|
87. अपनी हस्ती ही से हो जो कुछ हो आगही गर नहीं ग़फ़लत ही सही|
88. अपनी गली में मुझ को न कर दफ़्न बाद ए क़त्ल मेरे पते से ख़ल्क़ को क्यूँ मिले तेरा घर|
89. अर्ज़ ए नियाज़ ए इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा, जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा|
90. इश्क़ मुझ को नहीं वहशत ही सही, मेरी वहशत तिरी शोहरत ही सही|
91. अगर ग़फ़लत से बाज़ आया जफ़ा की तलाफ़ी की भी ज़ालिम ने तो क्या की|
92. काबा किस मुँह से जाओगे ग़ालिब शर्म तुम को मगर नहीं आती|
93. काफ़ी है निशानी तिरा छल्ले का न देना ख़ाली मुझे दिखला के ब वक़्त ए सफ़र अंगुश्त|
94. उस लब से मिल ही जाएगा बोसा कभी तो हाँ शौक़ ए फ़ुज़ूल ओ जुरअत ए रिंदाना चाहिए|
95. काव काव ए सख़्त जानी हाए तन्हाई न पूछ सुब्ह करना शाम का लाना है जू ए शीर का|
96. कभी नेकी भी उस के जी में गर आ जाए है मुझ से जफ़ाएँ कर के अपनी याद शरमा जाए है मुझ से|
97. कब वो सुनता है कहानी मेरी और फिर वो भी ज़बानी मेरी|
98. कह सके कौन कि ये जल्वागरी किस की है, पर्दा छोड़ा है वो उस ने कि उठाए न बने|
99. इशरत ए क़तरा है दरिया में फ़ना हो जाना, दर्द का हद से गुज़रना है दवा हो जाना|
100. आते हैं ग़ैब से ये मज़ामीं ख़याल में ग़ालिब सरीर ए ख़ामा नवा ए सरोश है|
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